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वैदिक ज्योतिष में रत्नो का महत्व-


ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट ग्रह पीड़ा निवारण हेतु अनेक उपय बताये गए हैं,जिनमे "मंत्र-यन्त्र-रत्न" ' प्रमुख हैं. किन्तु रत्न' के अलावा बाकी दो उपाय जनसाधारण के लिए सुगम नहीं है इसलिए रत्नो का ज्योतिषीय उपचार में' अधिक महत्व है. अब ये बताती हूँ कि रत्न किस प्रकार से काम करता है ! प्रत्येक रत्न अपनी उपरी सतह से संबंधित ग्रह' की उर्जा तरंगें अपनी ओर आकर्षित करता है तथा यह रत्न इन उर्जा तरंगों को अपनी निचली सतह से रत्न धारण करने वाले व्यक्ति के शरीर में स्थानांतरित कर देता है. आज आपको चंद्र ग्रह' के प्रतिनिधि रत्न 'मोती' की विशेषता से अवगत कराती हूँ. मोती का ज्योतिषीय महत्व : मोती, चन्द्र ग्रह' का प्रतिनिधित्व करता है! चन्द्र शुभ प्रभाव में हो तो मोती अवश्य धारण करना चाहिए !कुंडली में यदि चंद्र शुभ भाव का मालिक हो कर पीड़ित हो अथवा कमजोर हो तो मोती' धारण करके चन्द्रमा के अतिरिक्त बल को प्राप्त कर इसका लाभ उठा सकते हैं.वैसे जातकों के लिए मोती' अत्यंत लाभ दायक सिद्ध होता है ,क्यूंकि चन्द्रमा का सम्बन्ध मन से होता है.पीड़ित अथवा कमजोर चन्द्रमा डिप्रेशन(अवसाद),मतिभ्रम ,पागलपन आदि रोगों का कारण बन सकता है ! मोती' समस्त प्रकार के मानसिक रोगों के उपचार के लिए बहुत लाभदायक है, मोती ' क्रोध को नियंत्रित करता है,तथा ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी लाभदायक है. जिन लोगों को अकारण कोई भय-घबराहट' सताता रहता है वो भी मोती' धारण करके इस पर नियंत्रण पा सकते हैं ! मोती धारण करने से आत्मविश्वास बढ़ता है. जिन लोगों का व्यवसाय "दूध, पेय जल अथवा चांदी' से सम्बंधित है वो भी अपने व्यवसाय की उन्नति के लिए मोती धारण कर सकते हैं! लेकिन इससे पूर्व कुंडली में चन्द्रमा' की वास्तविक स्थिति की जानकारी आवश्यक है ! नवजात शिशुओं में 'बालारिष्ट योग' जो की एक अशुभ योग' है इसका निर्माणकर्ता भी चंद्र-ग्रह' ही है. प्राकृतिक मोती में 'कैल्शियम कार्बोनेट' पाया जाता है,जो की शरीर में इसकी कमी की भी पूर्ती करता है. इन सब बातों के बावजूद एक तथ्य' समझना आवश्यक है की इन लाभों के बावजूद मोती हर किसी के लिए शुभ नहीं होता और अशुभ फल भी प्रदान कर सकता है. आगे मैं बताती हूँ की किन-किन जातक/जातिका' को मोती' नहीं धारण करना चाहिए- मिथुन,सिंह, मकर तथा कुम्भ लग्न' वाले जातक/जातिका' को मोती धारण नहीं धारण करना चाहिए. जिन जातक/जातिका' के जन्मपत्री में विष योग(चंद्र+शनि) अथवा ग्रहण-योग(चन्द्रमा के साथ राहु' या केतु' की युति हो) बन रहा हो उन्हें मोती धारण नहीं धारण करना चाहिए . किसी और रत्न को मोती' के साथ धारण करने से पूर्व ,अथवा यदि पहले से कोई रत्न पहना हुआ है तो भी किसी ज्योतिषी से राय लेकर ही मोती' धारण करना चाहिए( ऐसे भी ये बात हर रत्न के धारण करने के ऊपर लागू होती है

. अब अंत में मोती' धारण करने की विधि पर प्रकाश डालती हूँ- शुक्ल-पक्ष की अष्टमी तिथि' से (क्यूंकि कृष्ण-पक्ष' की अष्टमी तिथि से शुक्ल-पक्ष' की अष्टमी तिथि तक चन्द्रमा' निर्बल रहता है और धारक को उचित लाभ देने में अक्षम होगा) कृष्ण-पक्ष' की अष्टमी तिथि तक मोती' धारण किया जा सकता है. मोती सोमवार (शुक्ल-पक्ष) को चंद्रोदय काल (सायं ७ बजे के आस-पास) चांदी में धारण करना चाहिए. समुचित लाभ के लिए 'कल्‍चर-मोती' की अपेक्षा 'प्राकृतिक-मोती' धारण करें। आजकल 'नकली या कृत्रिम मोती' प्‍लास्‍टिक और कांच आदि की सहायता से तैयार किया जा रहा है उससे सावधान रहें.


 
 
 

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